सोशल मीडिया ने साहित्य के लोकतंत्रिकीकरण की
प्रक्रिया को बढ़ाया
– प्रोफेसर
डॉ. दत्तात्रय मुरुमकर
“हम इक्कीसवीं सदी
में आ चुके है, लेकिन नयी पीढ़ी को लगता है कि हम उन्नीसवीं सदी
में या उससे भी पहलेवाले युग में जी रहे है। यही कारण है कि हमारा मानस सदियों
पुराना ही है जिसमें कुछ वर्ग का उत्पीड़न चला आ रहा है। कृषि क्रांति, औद्योगिक क्रांति, जनसंचार क्रांति और सूचना
क्रांति ने हमारे भौतिक जीवन को गतिशील बनाया किन्तु हमारा मानस मात्र वैसा ही जड़, संकीर्ण, परंपरागत एवं वर्चस्ववादी ही रहा है।
मीडिया पूँजीपतियों के हाथों का खिलौना बन चुका है। सोशल मीडिया ने साहित्य के
लोकतंत्रिकीकरण की प्रक्रिया को बढ़ाया है। अमुक वर्ग ही लिखेगा और वही प्रकाशित होगा
ऐसी स्थिति अब नहीं रही। खास करके उपेक्षितवर्ग के लिए अपनी अभिव्यक्ति का यह
स्वतंत्र मार्ग अब उनके पास है।” ऐसा मन्तव्य मुंबई विश्वविद्यालय के
प्रोफेसर डॉ. दत्तात्रय मुरुमकर ने
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के अवसर पर व्यक्त किया।
पूना कॉलेज हिंदी
विभाग, बैंक नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति पुणे, संयोजक
बैंक ऑफ महाराष्ट्र, शुभचिंतक फ़ाउंडेशन तथा पृथा फ़ाउंडेशन के
संयुक्त तत्वावधान में “इक्कीसवी सदी में मीडिया और साहित्य
की भूमिका” विषय पर संगोष्ठी सम्पन्न हुई। संयुक्त
राष्ट्रसंघ अमेरिका में हिंदी सेवा कर चुकी डॉ. नीलम जैन ने संगोष्ठी का उदघाटन
किया। डॉ. नीलम जैन ने कहा कि स्नेह और सदभावना के कारण ही आज इतनी बड़ी संख्या में
प्रतिभागी उपस्थित हुए है।
आनंद अग्रवाल ने
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उदघाटन समारोह में कहा कि “आज की पीढ़ी ने मीडिया का सही
इस्तेमाल करते हुए तकनीक के माध्यम से साहित्य का निर्माण करना चाहिए। हमे मीडिया
और साहित्य की शक्ति को समझना होगा। संचार माध्यमों का उचित प्रयोग कर के युवा
पत्रकारिता में अपना कैरियर बना सकते है। संचार माध्यमों में युवाओं को रोज़गार के
सुनहरे अवसर आज उपलब्ध हुए है।”
प्रोफेसर डॉ. सदानंद भोसले ने बीजभाषण में
साहित्य और मीडिया मे होनेवाले बदलाव से युवाओं को और अध्यापकों को जुडने के लिए
प्रेरित किया। उन्होने कहा कि यह शताब्दी सूचना और प्रौद्योगिकी की शताब्दी है।
वेब मीडिया पर हिंदी में रोज़ी कमानेवाले बहुत कम है। वेब पेज बनाना हमें सीखना
होगा तभी हम अत्याधुनिक पाठकों तक पहुँच सकते है। जो सीखेंगा वही कुछ पाएगा इस
मंत्र के साथ उन्होने सभी उपस्थितों को प्रेरित किया। प्राचार्य डॉ. आफताब अनवर शेख ने मीडिया और
साहित्य के बदलते स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए उसके माध्यम से रोजगार के अवसर पर
चर्चा की। डॉ. शाहबूद्दीन शेख के मार्गदर्शन में डॉ. कामिनी बल्लाल और डॉ. अनिता
वेताल अंतरे की पुस्तकों का लोकार्पण मान्यवरों के करकमलों द्वारा हुआ।
प्रथम सत्र मे मीडिया पर डॉ. ज्योति शर्मा, चंडीगढ़ ने विषय प्रवर्तन किया। डॉ. रहमान मुसव्विर,
नई दिल्ली, ने अध्यक्षता की. इस अवसर पर डॉ. लता चौहान, बंगलुरु, मिसेस शाहताज ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
डॉ. माधुरी जोशी, डॉ. अर्चना गौतम, डॉ.
नागनाथ भेंड़े, डॉ. मेदिनी अंजनीकर, डॉ.
ऐनूर इनामदार, डॉ. बेबी कोलते, प्रा. जैनूद्दीन
मुजावर, डॉ. बाबा गव्हाने, डॉ.
राजेंद्र जमदाड़े, डॉ. पारधी, प्रा.
आसमा शेख आदि ने अपने शोधालेख प्रस्तुत किए।
इस सत्र का संचालन डॉ. प्रेरणा उबाले और आभार डॉ. बालासाहेब सोनवने ने
किया।
द्वितीय सत्र में
साहित्य पर मीनाक्षी भालेराव, डॉ. रहिम खान पठान, हैदराबाद ने अपने विचार व्यक्त किए। इस सत्र मे डॉ. भगवान कांबले, डॉ. विनोदकुमार वायचल, डॉ. नवनाथ गाड़ेकर, डॉ. संगीता चित्रकोटी, मुमताज़ पठान, रानी लोखण्डे, प्रा. वैशाली झगड़े, डॉ. पल्लवी पाटील, प्रा.कविता चव्हाण, प्रा. कोल्हे, डॉ. स्मृति चौधरी आदि ने अपने
शोधालेख प्रस्तुत किए। मंच का संचालन ललिता गुप्ता ने तथा आभार डॉ. सलीम मनियार ने
किया।
समापन सत्र में
दयानन्द कनकदन्डे, डॉ. सुरेखा मंत्री, डॉ. प्रिया. ए. ने अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. शहाबूद्दीन शेख ने
अध्यक्षता इस सत्र की अध्यक्षता की। इस अवसर पर प्रा. इम्तियाज़ आगा, प्रा. रुकसाना शेख, उपस्थित थे। डॉ. शेख मोहम्मद
शाकिर ने सत्र का संचालन किया तथा डॉ. बाबा शेख ने आभार व्यक्त किया।
130 प्रतिभागियों ने इस संगोष्ठी
में सहभाग लिया। संगोष्ठी को सफल बनाने के लिए डॉ. अर्चना गौतम, डॉ. मिलिंद बनकर, डॉ. अनिल काले, डॉ. दत्तात्रय तिलेकर, डॉ. अश्विनी पुरुडे, डॉ. ज़ोहेब हसन, डॉ. अहमद शमशाद, डॉ. मो. सलीम मनियार, प्रा. जावेद अख़्तर, डॉ. गुलनवाज़, डॉ. विद्यासागर,
प्रा. आसिफ खान, मोहसिन मोकाशी, सलमान, आमीर आदि ने परिश्रम लिया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें